Sunday 10 May 2015

माँ

माँ  के हँसते रहने की,
छोटी सी वजह तो हम भी थे।

उसकी आँखों के नूर में शामिल,
थोड़ी सी जगह में हम भी थे।

आज नहीं वो पास में लेकिन,
अहसास ज़रा सा दिल में है।

शायद उसके जाने में कहीं,
एक वजह तो हम भी थे।।

Wednesday 6 May 2015

सुनहरी यादें

महलों में आ कर बसने से, साथ पुराने छुट गए।
जब से घर में खुशियां आई, सुख वो सुहाने रुठ गए॥

मिटटी का चुल्ल्हा, खुल्ले बर्तन और अंगीठी की गर्मी,
एक ओवन के आ जाने से, हमसे वो सारे छुट गए॥
जब से घर में खुशियां आई.…

माँ का पंखा हाथ से झलना, रातों को उठ उठ कर तकना,
बच्चों की खातिर भूखा  रहना, आधा सोना आधा जगना,
टी. वी., मोबाइल, फेसबुक में अहसास वो सारे घुट गए ॥
जब से घर में खुशियां आई.…

सभी दोस्तों के घर जाते, घंटों करना लाखों बातें,
अंताक्षरी में समय बिताना,  फिर भी समय का कहीं न जाना,
एंग्री बर्ड और कैंडी क्रश से खेल वो सारे छुट गए॥
जब से घर में खुशियां आई.…

हाथ का पंखा झलते झलते, यूँ सपनों  में खो जाना,
दिन भर रहना मौज में अपनी, रात को थक कर सो जाना,
घर से दफ्तर आ-जाने में अंदाज़ हमारे छुट गए॥
जब से घर में खुशियां आई.…

विज्ञान का अपने नियम पे अड़ना, इतिहास का कभी आगे न बढ़ना,
मिल कर करना खूब पढाई, ३२-३३ की वो लड़ाई,
आज सफलता के पैमानों पे जीत हार सब छुट गए॥


जब से घर में खुशियां आई, सुख वो सुहाने रुठ गए॥

Saturday 2 May 2015

कुछ तुम्हारे लिए

ख़ास दिन पर तुम्हारे, और क्या ख़ास दे,
जो पसंद आये तुमको, क्या ऐसा करे?
मित्रता ये मेरी, है तुम्हारे लिए,
अब तुम ही कहो ओर क्या वार दें।
खुशियाँ जहान भर की, क्या तुमको भेंट दें,
सारे ब्रह्मांड को तेरे आंचल में समेट दें।
महके महके ही सारे, तुमको ख्वाब दें,
पर जो खुद गुलाब हो, उसे क्या गुलाब दें।
कामना ये है मेरी, रहो खुश तुम सदा,
कोई ऐसा मिले, जो तुम पे खुद को हार दे।