महलों में आ कर बसने से, साथ पुराने छुट गए।
जब से घर में खुशियां आई, सुख वो सुहाने रुठ गए॥
मिटटी का चुल्ल्हा, खुल्ले बर्तन और अंगीठी की गर्मी,
एक ओवन के आ जाने से, हमसे वो सारे छुट गए॥
जब से घर में खुशियां आई.…
माँ का पंखा हाथ से झलना, रातों को उठ उठ कर तकना,
बच्चों की खातिर भूखा रहना, आधा सोना आधा जगना,
टी. वी., मोबाइल, फेसबुक में अहसास वो सारे घुट गए ॥
जब से घर में खुशियां आई.…
सभी दोस्तों के घर जाते, घंटों करना लाखों बातें,
अंताक्षरी में समय बिताना, फिर भी समय का कहीं न जाना,
एंग्री बर्ड और कैंडी क्रश से खेल वो सारे छुट गए॥
जब से घर में खुशियां आई.…
हाथ का पंखा झलते झलते, यूँ सपनों में खो जाना,
दिन भर रहना मौज में अपनी, रात को थक कर सो जाना,
घर से दफ्तर आ-जाने में अंदाज़ हमारे छुट गए॥
जब से घर में खुशियां आई.…
विज्ञान का अपने नियम पे अड़ना, इतिहास का कभी आगे न बढ़ना,
मिल कर करना खूब पढाई, ३२-३३ की वो लड़ाई,
आज सफलता के पैमानों पे जीत हार सब छुट गए॥
जब से घर में खुशियां आई, सुख वो सुहाने रुठ गए॥