Tuesday 25 July 2017

आचार्य वंदन

हे गुरुदेव! है नमन आपको,
आप इसे स्वीकार करें।
कृपादृष्टि सदा रखें मुझ पर,
बस इतना उपकार करें।।

कीचड में से कमल के जैसा,
खिला दिया है आपने मुझको।
रखें सदा मुझे अपनी शरण में,
और मेरा उद्धार करें।।

चरण कमल जहाँ पड़ें आपके,
वो रज अमृत हो जाए।
जिन शिष्यों को शरण में ले लो,
जीवन जागृत हो जाए।।

कैसे शुक्रिया करूँ आपका,
दिल में मुझे यूँ बिठा लिया।
 इतना प्यार दिया मुझको,
प्यारा सा रिश्ता बना लिया।।

नए वर्ष की और चलें हैं,
नए लोग नई बातें होंगी।
पर जो गुजरी संग आपके,
कहाँ वो दिन कहाँ रातें होंगी।।

दिया आपने इतना मुझको,
कैसे कर्ज़ चुकाऊं मैं।
गुरुदक्षिणा में आपको क्या दूँ,
 बस वंदन बारम्बार करूँ।।

गुरुदेव! जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!!

Tuesday 14 February 2017

प्यार का पैगाम

दो अक्षर प्यार के कह दे तू,
आधा मैं भी कह जाऊंगा!
तू यार बना ले मुझ को बस,
"प" से खुद ही जुड़ जाऊंगा!!
           एक दिन में प्यार करूँ कैसे,
           जीवन भी कम पड़ जाता है!
           पल भर भी एहसास में आये तू,
           दिल उठता है, थम जाता है!!
तेरी बिना रजा के मैं,
खुद इकरार करूँ कैसे?
एक बार इशारा तो कर दे,
उस साँस में सब कह जाऊंगा!!
               एक बार अगर तू हाँ कह दे,
               तेरे नख़रे सारे झेलुँगा!
               ख़ुशियाँ भर के दामन में तेरे,
               तेरे दुःख मैं सारे ले लूँगा !!
इस जीवन में अगर तू मिल जाए,
शायद मोक्ष मिले मुझको!
गर साथ न तेरा मिल पाया,
एक और जन्म ले आऊंगा!!
               शायद मेरे नसीब में भी,
               इतना सुख तो लिखा होगा!
               मेरी आँखें बनाते हुए उसे,
               तेरा चेहरा भी तो दिखा होगा!!
बस इतना भर कह दे मुझसे,
तेरा दिल मिलने को करता है!
ख़ुदा ख़ुद भी मुझे लेने आया, तो,
उससे भी मैं लड़ जाऊंगा!!

Sunday 14 February 2016

प्रेम ?

वैलेंटाइन्स डे की, देखी अजब सी माया..... 

एक ग़रीब फूलवाले ने, महीने से ज्यादा कमाया,
फूलों ने टूट कर डाल से, दो दिलों को मिलवाया,
और कुछ राष्ट्रवादियों ने, राष्ट्रधर्म निभाया,
प्रेमियों पर लाठियां बरसाकर, देशप्रेम दर्शाया,

साल भर के प्रेम को, एक दिन ने दिया तोड़,
वाह रे वैलेंटाइन्स डे, तेरी नहीं है कोई होड़..... 

प्रेम नहीं है तन का, मन का, धन का, यौवन का मोहताज.....

प्रेम तो है एक आशा, एक चंचल सी अभिलाषा, 
की देखूं उसको ज़रा सा.....

बस झलक एक पल की, वो मुस्कराहट ज़रा हल्की, 
वो मन में उठती तरंगे, लौ पे निडर से उड़ते पतंगे..... ये प्रेम ही तो है.. 

अपना अस्तित्व खोने की जिद में, नदी का सागर में मिलना, 
कुचले जाने से बेख़ौफ़, फूलों का शिद्दत से खिलना..... ये प्रेम ही तो है..

चकौर का रात भर चाँद को निहारना, फिर आँखें लेना मूँद 
मोती बनने की चाह में, वो ओस की एक बूँद.....ये प्रेम ही तो है.. 

है न?


Tuesday 18 August 2015

मेरा स्वप्निल देश

अमर शहीदों ने अपने खून से जिसे सँवारा था,
कहाँ गया वो देश हमारा, जो हमको बेहद प्यारा था।

          गूँज उठी थी सन सत्तावन में, ललकार वो रानी झांसी की,
          खून खौल उठता है सुनके, भगत सिंह कि फांसी की।

तब नहीं कहीं पे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई होते थे,
कहाँ गया वो समय जब सारे, भाई-भाई होते थे।

          तब नहीं कहीं भी अखबारों में, वहशी दरिंदे होते थे,
          कहाँ गए वो लोग जिनके नारे, "मातरम वन्दे" होते थे।

गांधी जी ने देश को एक, नया सबक सिखलाया था,
बिना जरा भी खून बहाए, लड़ने का पथ दिखलाया था।

          कृष्ण, बुद्ध, कबीर वो राम-राज्य, कहाँ पर चला गया,
          कहीं पुराणों के हाथों तो, नहीं इंसानों को छला गया?

आज सपने में दिखी झलक सी, एक देश जो सबसे न्यारा था,
शायद फिर से बन सके, वो देश, जो हमको बेहद प्यारा था।