Sunday 14 February 2016

प्रेम ?

वैलेंटाइन्स डे की, देखी अजब सी माया..... 

एक ग़रीब फूलवाले ने, महीने से ज्यादा कमाया,
फूलों ने टूट कर डाल से, दो दिलों को मिलवाया,
और कुछ राष्ट्रवादियों ने, राष्ट्रधर्म निभाया,
प्रेमियों पर लाठियां बरसाकर, देशप्रेम दर्शाया,

साल भर के प्रेम को, एक दिन ने दिया तोड़,
वाह रे वैलेंटाइन्स डे, तेरी नहीं है कोई होड़..... 

प्रेम नहीं है तन का, मन का, धन का, यौवन का मोहताज.....

प्रेम तो है एक आशा, एक चंचल सी अभिलाषा, 
की देखूं उसको ज़रा सा.....

बस झलक एक पल की, वो मुस्कराहट ज़रा हल्की, 
वो मन में उठती तरंगे, लौ पे निडर से उड़ते पतंगे..... ये प्रेम ही तो है.. 

अपना अस्तित्व खोने की जिद में, नदी का सागर में मिलना, 
कुचले जाने से बेख़ौफ़, फूलों का शिद्दत से खिलना..... ये प्रेम ही तो है..

चकौर का रात भर चाँद को निहारना, फिर आँखें लेना मूँद 
मोती बनने की चाह में, वो ओस की एक बूँद.....ये प्रेम ही तो है.. 

है न?


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