Tuesday 18 August 2015

नन्हे सपने

हम, तब जागा करते थे, जब सारी दुनिया सोती थी।
तब सपने बहुत बड़े थे अपने, जब आँखे छोटी छोटी थी।।

जो चाहते थे कर जाते थे, किस्मत भी साथ में होती थी।
तब सपने बहुत बड़े थे अपने, जब आँखे छोटी छोटी थी।।

दिन ढलते ही शौंक, कहानी सुनने का होता था अपना।
शौंक वो पुरे करने को, माँ तब साथ में सोती थी।।
तब सपने बहुत बड़े थे अपने……

रोते थे तब मनमर्जी को, यहाँ वहां की फ़िक्र कहाँ थी।
दुनियाभर की सारी चीज़ें, पापा की जेब में होती थी।।
तब सपने बहुत बड़े थे अपने……

लड़ते थे सारे यारों से, पर जात-धर्म की बात नहीं थी।
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में, सूरत सब एक सी होती थी।।
तब सपने बहुत बड़े थे अपने……

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